बहुत दिनों बाद आपकी कोई पोस्ट आयी है… लेकिन सुंदर और सटीक रचना.. खास तौर पर आज जब भोपाल हादसे में अपने देश के राजनीतिज्ञों की संदिग्ध भूमिका के बाद आपकी रचना और भी प्रासंगिक बन जाती है… डिजिटल युग में आपकी कविता का प्रस्तुतिकरन भी बहुत शानदार है… एअक सार्थक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
मुझे याद आता है एक ज़ुमला ———अगर चैन से सोना है तो जाग जाओ ————- देश मे राजनैतिक भ्रष्टाचार चरम पर पहुँच चुका है ! देश क़ी राजनेतिक सोच तभी बदलेगी जब जन गण जागेगा !
इंतजार करो जब भारत मै भी रूस जैसी बोल्शेविक क्रांति होगी ! सूत्रपात हो चुका है ! कमी है तो सिर्फ एक लेनिन के पैदा होने की, शायद वो आप किसी पत्रकार के अन्दर हो या किसी अफसर के , किसान के , मजदूर के , प्रोफ़ेसर के या फिर किसी साधारण इन्सान के ! क्योंकि जब भी कोई जनांदोलन शुरू होता है तुरंत राजनेताओ के गुर्गे उन भोले लोगों को बरगलाकर दिशाहीन कर देते है ! नाम दे दिया जाता है आतंकवाद ( खालिस्तान और नक्सलवाद इसका जीता जगाता उदहारण है ) आप उदहारण के रूप मे आरक्षण को हि ले लीजिए! सोचो जब एक कर्मचारी आरक्षण के बल पर जूनियर होते हुए भी अपने सवर्ण सीनियर का बॉस बन जाता है तो कैसा गुजरता होगा उस सवर्ण पर ? मेरी समझ मे तो ये ही नहीं आता क़िकोई सम्पूर्ण जाती दलित कैसे हो सकती है ! जब क़ि उसी जाती के अनेक लोग देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे हों ? अगर ये मान भी लिया जाय क़ि कुछ सवर्णों ने कभी कुछ तथाकथित निम्न वर्ण के लोगों को सताया होगा जिससे दलित शब्द का उदय हुआ होगा तो क्या मुझे कोई ये बताएगा क़ि पिता के किये किसी तथाकथित दुष्कर्म क़ी सजा बेटे को संविधान क़ी किस धारा के अंतर्गत दी जा सकती है ? ये कौनसा प्राकृतिक न्याय है जिसमे पूर्वजों के किसी कृत्य क़ी सजा उनके वंसजों को ही नहीं वल्कि उसकी सम्पूर्ण जाती को दी जाती है ? यदि ये उचित है तो अंग्रेजों को ऐसी कोई सजा क्यों नहीं दी गई जबकि उन्हों ने तो सम्पूर्ण देश को ही दलित बना दिया था ! लेकिन नहीं आज वे देश के आदर्श हैं ! ये तो मात्र एक उदहारण भर हि है ! आगामी अंक में अन्य विषयों की समीक्षा की जाएगी मुझे विश्वास है अब ज्यादा देर नहीं है एक एक भ्रष्टाचारी को चुन चुन कर फावड़े खुरपी और दरांती से हि उसके अंजाम तक पहुंचा दिया जायेगा ! क्योंकि न तो विधायिका से ,ना न्यायपालिका से और ना कार्यपालिका से कोई आशा रह गयी है ! पुलिस का आदर्शवाक्य देखिये———— "परित्राणाय साधुनाम , विनाशाय च दुश्क्रताम " परन्तु वास्तविकता उलट हि है ! ""परित्राणाय दुश्त्तानाम, विनाशाय च साधूनाम ! "" देखते है कब तक रोक सकेंगे भ्रष्ट लोग जनांदोलन को————— आह्वान करता हूँ ,………………… चैन से जीना है तो जाग जाओ …………………….
इस देश की संसद हो या विधान सभा हर जगह जार (तत्कालीन रूसी शासक ) बैठे है ! देश की विधायिका हो , न्यायपालिका हो या कार्यपालिका सभी भ्रष्टाचार के शिखर पर जा बैठे हैं ! जिनके भ्रष्टाचार का पर्दाफास किन्ही कारणों से हो नहीं पा रहा है वे ही पाक-साफ दिख रहे है! अन्यथा देश की हर समस्या की जड़ संसद या विधान सभा मै ही क्यों निकलती है ? हर भ्रष्टाचार की अँधेरी सुरंग का चोर दरवाज़ा किसी न किसी सांसद या विधायक के घर के अन्दर ही क्यों खुलता है ? आज देश की विधायिका मै वालात्कारियों के , आर्थिक राजनैतिक सामाजिक न्यायिक भ्रष्टाचारियों के सरपरस्त बैठें हैं ! लोकतंत्र के चार स्तम्भ मैं से ———- कोंन बचाएगा देश की 90 %जनता को ?????????????????? नेता लोग ( विधायिका ) ?…………………..बिलकुल नहीं !( वे तो खुद हि इन समस्याओं की जड़ है ) जब देश के एक पूर्व प्रधान मंत्री ने स्वीकार किया था की जब जनता को १०० रु. दिया जाता है तो केवल १५ पैसे हि वहां तक पहुँचता है तो मेरे विचार सेजो अच्छे हैं वे लोग भी बेवश है न्याय पालिका /?????…………………………………बहुत कम, बल्कि आज के परिप्रेक्ष्य मे तो बिलकुल नहीं (आम धारणा है — न्याय पैसे से बिकता है,नेता ,उद्योग पति ,एवं उच्च पदस्थ अफसर के लिए न्याय की अवधारणा व परिभाषा अलग है जबकि आम एवं गरीव लोगों के लिए अलग ) लोग ठीक हि कहते हैं ———-जिस पर जाँच बिठाई , उस पर आंच न आई ! ( बहुत मजबूर होकर या फिर अपने प्रतिद्वंदी से बदला लेने के लिए हि कार्यवही को अंजाम तक पहुँचाया जाता है ! ) तो फिर कार्यपालिका /??????……………………… कोई सवाल हि पैदा नहीं होता (वे बेचारे तो भ्रष्ट राजतन्त्र के मोहरे है , निरीह जनता का खून चूस चूस कर ऊपर तक पहुचाने के बीच बमुश्किल ५०% भ्रष्टा खा पाते है ) अब बचता है चौथा स्तम्भ — " मीडिया " –{इलक्ट्रोनिक या प्रिंट } ……………………….लोग सोचते है शायद कुछ हो सकता है तो इन्ही से आशा है, वैसे कसर यहाँ भी नहीं है -बहुत सारे sting opration किये हि इस लिए जाते है की black mailing के लिए उनका उपयोग किया जा सके ! सोचो अब आशा बचती कहाँ हैं ???????????????
wah…. kya khoob likha hai … main sochata hun desh main raajneeti ek vidroop ban gayi hai !
kuchh vichaar uthe hai likh raha hun !
++++++++++++++++++++++++++++++++
बड़े खेद की बात है ,सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए Rajnaitik लोग सारी समस्याओं के निराकरण के लिए आम लोगों को हि ज़िम्मेदार घोषित करते है ,जब किवास्तव मे वे स्वयं ही सारी समस्याओं के मूल है ! हर कार्य के लिए चाहिए शब्द का प्रयोग ये ही दर्शाता है जैसे इनकी कोई ज़िम्मेदारी या कर्त्तव्य है ही नहीं ! बहुत हो चुका चाहिए, अब चाहिए से काम नहीं चलेगा ! अगर कुछ करने की वास्तव मे इच्छा शक्ति है तो बोलना होगा -हम ऐसा करेंगे !
Hamesha ki tarah sachaai ko bahut hi khoobi se bayaan kia hai aapne… Very wonderfully written. And the best part is the verbiage that has been used by you! Marvellous…
बहुत दिनों बाद आपकी कोई पोस्ट आयी है… लेकिन सुंदर और सटीक रचना.. खास तौर पर आज जब भोपाल हादसे में अपने देश के राजनीतिज्ञों की संदिग्ध भूमिका के बाद आपकी रचना और भी प्रासंगिक बन जाती है… डिजिटल युग में आपकी कविता का प्रस्तुतिकरन भी बहुत शानदार है… एअक सार्थक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
After a long ..sachchaii ko darshati huyi shaandaar panktiyan….
like it a lot rajat…may be experiencing now a days in this business world …or whatever….:))
waah! waah!
bahut hi achcha likha hai
एक प्रभावशाली रचना है. आज की राजनीति को सच्चाई से उपयुक्त शब्दों में प्रस्तुत किया है.
बस राज करने की नीति है राजनीति !!
nice
आपने तो राजनीति का ढंग से पोस्टमार्टम कर डाला.बधाई…
bahetareen….
badhiyaa
मुझे याद आता है एक ज़ुमला ———अगर चैन से सोना है तो जाग जाओ ————-
देश मे राजनैतिक भ्रष्टाचार चरम पर पहुँच चुका है !
देश क़ी राजनेतिक सोच तभी बदलेगी जब जन गण जागेगा !
इंतजार करो
जब भारत मै भी रूस जैसी बोल्शेविक क्रांति होगी !
सूत्रपात हो चुका है !
कमी है तो सिर्फ एक लेनिन के पैदा होने की,
शायद वो आप किसी पत्रकार के अन्दर हो या किसी अफसर के , किसान के , मजदूर के , प्रोफ़ेसर के या फिर किसी साधारण इन्सान के !
क्योंकि जब भी कोई जनांदोलन शुरू होता है तुरंत राजनेताओ के गुर्गे उन भोले लोगों को बरगलाकर दिशाहीन कर देते है ! नाम दे दिया जाता है आतंकवाद ( खालिस्तान और नक्सलवाद इसका जीता जगाता उदहारण है ) आप उदहारण के रूप मे आरक्षण को हि ले लीजिए! सोचो जब एक कर्मचारी आरक्षण के बल पर जूनियर होते हुए भी अपने सवर्ण सीनियर का बॉस बन जाता है तो कैसा गुजरता होगा उस सवर्ण पर ?
मेरी समझ मे तो ये ही नहीं आता क़िकोई सम्पूर्ण जाती दलित कैसे हो सकती है ! जब क़ि उसी जाती के अनेक लोग देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे हों ?
अगर ये मान भी लिया जाय क़ि कुछ सवर्णों ने कभी कुछ तथाकथित निम्न वर्ण के लोगों को सताया होगा जिससे दलित शब्द का उदय हुआ होगा
तो क्या मुझे कोई ये बताएगा क़ि पिता के किये किसी तथाकथित दुष्कर्म क़ी सजा बेटे को संविधान क़ी किस धारा के अंतर्गत दी जा सकती है ?
ये कौनसा प्राकृतिक न्याय है जिसमे पूर्वजों के किसी कृत्य क़ी सजा उनके वंसजों को ही नहीं वल्कि उसकी सम्पूर्ण जाती को दी जाती है ?
यदि ये उचित है तो अंग्रेजों को ऐसी कोई सजा क्यों नहीं दी गई जबकि उन्हों ने तो सम्पूर्ण देश को ही दलित बना दिया था ! लेकिन नहीं आज वे देश के आदर्श हैं !
ये तो मात्र एक उदहारण भर हि है !
आगामी अंक में अन्य विषयों की समीक्षा की जाएगी
मुझे विश्वास है अब ज्यादा देर नहीं है एक एक भ्रष्टाचारी को चुन चुन कर फावड़े खुरपी और दरांती से हि उसके अंजाम तक पहुंचा दिया जायेगा ! क्योंकि न तो विधायिका से ,ना न्यायपालिका से और ना कार्यपालिका से कोई आशा रह गयी है !
पुलिस का आदर्शवाक्य देखिये————
"परित्राणाय साधुनाम , विनाशाय च दुश्क्रताम "
परन्तु वास्तविकता उलट हि है ! ""परित्राणाय दुश्त्तानाम, विनाशाय च साधूनाम ! ""
देखते है कब तक रोक सकेंगे भ्रष्ट लोग जनांदोलन को—————
आह्वान करता हूँ ,…………………
चैन से जीना है तो जाग जाओ …………………….
Cont……..
इस देश की संसद हो या विधान सभा हर जगह जार (तत्कालीन रूसी शासक ) बैठे है !
देश की विधायिका हो , न्यायपालिका हो या कार्यपालिका सभी भ्रष्टाचार के शिखर पर जा बैठे हैं !
जिनके भ्रष्टाचार का पर्दाफास किन्ही कारणों से हो नहीं पा रहा है वे ही पाक-साफ दिख रहे है!
अन्यथा देश की हर समस्या की जड़ संसद या विधान सभा मै ही क्यों निकलती है ?
हर भ्रष्टाचार की अँधेरी सुरंग का चोर दरवाज़ा किसी न किसी सांसद या विधायक के घर के अन्दर ही क्यों खुलता है ?
आज देश की विधायिका मै वालात्कारियों के , आर्थिक राजनैतिक सामाजिक न्यायिक भ्रष्टाचारियों के सरपरस्त बैठें हैं !
लोकतंत्र के चार स्तम्भ मैं से ———-
कोंन बचाएगा देश की 90 %जनता को ??????????????????
नेता लोग ( विधायिका ) ?…………………..बिलकुल नहीं !( वे तो खुद हि इन समस्याओं की जड़ है ) जब देश के एक पूर्व प्रधान मंत्री ने स्वीकार किया था की जब जनता को १०० रु. दिया जाता है तो केवल १५ पैसे हि वहां तक पहुँचता है तो मेरे विचार सेजो अच्छे हैं वे लोग भी बेवश है
न्याय पालिका /?????…………………………………बहुत कम, बल्कि आज के परिप्रेक्ष्य मे तो बिलकुल नहीं (आम धारणा है — न्याय पैसे से बिकता है,नेता ,उद्योग पति ,एवं उच्च पदस्थ अफसर के लिए न्याय की अवधारणा व परिभाषा अलग है जबकि आम एवं गरीव लोगों के लिए अलग )
लोग ठीक हि कहते हैं ———-जिस पर जाँच बिठाई , उस पर आंच न आई !
( बहुत मजबूर होकर या फिर अपने प्रतिद्वंदी से बदला लेने के लिए हि कार्यवही को अंजाम तक पहुँचाया जाता है ! )
तो फिर कार्यपालिका /??????……………………… कोई सवाल हि पैदा नहीं होता (वे बेचारे तो भ्रष्ट राजतन्त्र के मोहरे है , निरीह जनता का खून चूस चूस कर ऊपर तक पहुचाने के बीच बमुश्किल ५०% भ्रष्टा खा पाते है )
अब बचता है चौथा स्तम्भ —
" मीडिया " –{इलक्ट्रोनिक या प्रिंट } ……………………….लोग सोचते है शायद कुछ हो सकता है तो इन्ही से आशा है, वैसे कसर यहाँ भी नहीं है -बहुत सारे sting opration किये हि इस लिए जाते है की black mailing के लिए उनका उपयोग किया जा सके !
सोचो अब आशा बचती कहाँ हैं ???????????????
wah….
kya khoob likha hai …
main sochata hun desh main raajneeti ek vidroop ban gayi hai !
kuchh vichaar uthe hai likh raha hun !
++++++++++++++++++++++++++++++++
बड़े खेद की बात है ,सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए Rajnaitik लोग सारी समस्याओं के निराकरण के लिए आम लोगों को हि ज़िम्मेदार घोषित करते है ,जब किवास्तव मे वे स्वयं ही सारी समस्याओं के मूल है ! हर कार्य के लिए चाहिए शब्द का प्रयोग ये ही दर्शाता है जैसे इनकी कोई ज़िम्मेदारी या कर्त्तव्य है ही नहीं ! बहुत हो चुका चाहिए, अब चाहिए से काम नहीं चलेगा ! अगर कुछ करने की वास्तव मे इच्छा शक्ति है तो बोलना होगा -हम ऐसा करेंगे !
See my blog ………….
naqalichehare123.blogspot.com
Regards,
Dr.Acharya L S
well said.
acchi lagi ye rachna
सुन्दरतम्
ek shashakt rachna
rajneeti vishay par bahut bebaki se kavita kahi hai aapne.. badahi
राजनीति तो अच्छा है लेकिन जो राजनीत कर रहे है वो गलत है । बहुत खूब…
राजनीति तो अच्छा है लेकिन जो राजनीत कर रहे है वो गलत है । बहुत खूब…
राजनीति तो अच्छा है लेकिन जो राजनीत कर रहे है वो गलत है । बहुत खूब…
Hello Rajat,
Hamesha ki tarah sachaai ko bahut hi khoobi se bayaan kia hai aapne…
Very wonderfully written.
And the best part is the verbiage that has been used by you! Marvellous…
Regards,
Dimple
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की सबसे बेहतर व्याख्या कही जा सकती है। काश इसकी चोट वे महसूस कर सकें जिन्होंने राजनीति को दूषित कर दिया है।
Awesome!!!
उम्दा … बहुत खूब ||