मेरे अश्कों के निशाँ इस ख़त की रंगत में चार चाँद लगाते हैं …….. मैकदे की उदास फिज़ाओं में डूब कर पढ़ा गया ये ख़त हमें भी रंजीदा कर गया …. आपकी नज़्म जज़्बात और एहसासात से भरपूर है बार-बार पढ़ लेने पर भी यूं लगता है कि प्यास बाक़ी है खैर …एक अच्छी रचना पर बधाई स्वीकारें —मुफलिस—
नारुल्ला जी ,
आप लिखते तो क्या खूब हैं….पर ये निराशा के पुट अच्छे नहीं …और एक बात आप में प्रतिभा है….बहोत अच्छा लिख सकते हो….जारी रहें….!!
मेरे अश्कों के निशाँ इस ख़त की रंगत में
चार चाँद लगाते हैं ……..
मैकदे की उदास फिज़ाओं में डूब कर पढ़ा गया
ये ख़त हमें भी रंजीदा कर गया ….
आपकी नज़्म जज़्बात और एहसासात से भरपूर है
बार-बार पढ़ लेने पर भी यूं लगता है कि प्यास बाक़ी है
खैर …एक अच्छी रचना पर बधाई स्वीकारें
—मुफलिस—
“zazbaato ko shbdo ke madhyam se reesa lena bhi rachna ki sarthkta hoti he….”
pasand aayaa apka ahsaas bhi..
सुन्देर अभिव्यक्ति है एह्सास को श्ब्द मिल जायें तो कविता की खूब्सुरती और भि बढ जाती है
waah Rajat………such mein toooooo good, thanks for letting me know!