“Slow down and enjoy life. It’s not only the scenery you miss by going to fast – you also miss the sense of where you are going and why.” —- Eddie Cantor (American – Comedian)
सडकें चौड़ी है, इमारतें भी ऊँची है, चाहत से पहले हर वस्तु पहुंची है, भैये यही महानगर है, सबके सपनो का शहर है लोग अपना गाँव छोड़ रहे है, घर से भी रुक्सत हो रहे है, भैये सीधी सी बात है, मुश्किलों से फुर्सत ले रहे है अब हमें नहीं चाहिए प्यार, रोटी भी दो की जगह चार, और साथ खाने को है माँ-बाप के अरमानो का अचार, भैये यही है महा नगर का बाज़ार हाथों में मोबाइल लेकर, अमरीका तक बतियाते है पड़ोस में रहता है कौन, सारी उम्र न जान पाते है प्रेमिका की ख्वाहिस करने को पूरी peronal loan लेते है बहन की फटी हुई सारी gogles लगा के देखते है राजधानी ट्रेन की AC अब भने लगी है, Kingfisher की उड़ान लुभाने लगी है कहने को तो मैं कहता ही जाऊंगा लिखने बैठ गया तो ग्रन्थ लिख जाऊंगा पर लाख टके की बात मुफ्त में बतलाता हूँ महानगर को कोसना बंद करो हमारा इक्छा हमें बहकता है अपने दिल को ज़रा सा साफ़ करो, अब मुझे माफ़ करो चाहोगे तो पूरा महानगर अपना परिवार लगेगा वरना भैये अपना परिवार भी महानगर लगेगा बुरा कोई जगह या बुरी कोई चीजे नहीं होती बुरे होते है हम, हमारी सोंच बुरी होती है वो किसी ने खूब ही तो कहा है हमसे है जमना, हम ज़माने से नहीं…
दिन निकलता है ज़िन्दगी की उम्मीद बन …बहुत खूब कहा …!!
जब रहना यही है तो इस चकाचौंध की भी आदत लगा लो मित्र !!
I like the truth n depth of your thoughts in your writeups..
bhavpoorn kavita !!
दिन निकलता है ज़िन्दगी की उम्मीद बन .अच्छी लाईन.
उम्दा रचना..
अच्छी कविता है रजत जी लेकिन स्पेलिंग की गलतियाँ ठीक कर लें ।
hun sab kitane bebas aur lachaar bante ja rahe hai is paise ke chakkar me. badhiya rachana, abhinandan
nice
bahut khoob likha bhai aapne.mai ne bhi adna si koshish ki thi.yahaan dekhiye:
http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2007/05/070503_kavita_shahroz.shtml
सडकें चौड़ी है, इमारतें भी ऊँची है,
चाहत से पहले हर वस्तु पहुंची है,
भैये यही महानगर है, सबके सपनो का शहर है
लोग अपना गाँव छोड़ रहे है, घर से भी रुक्सत हो रहे है,
भैये सीधी सी बात है, मुश्किलों से फुर्सत ले रहे है
अब हमें नहीं चाहिए प्यार, रोटी भी दो की जगह चार,
और साथ खाने को है माँ-बाप के अरमानो का अचार,
भैये यही है महा नगर का बाज़ार
हाथों में मोबाइल लेकर, अमरीका तक बतियाते है
पड़ोस में रहता है कौन, सारी उम्र न जान पाते है
प्रेमिका की ख्वाहिस करने को पूरी peronal loan लेते है
बहन की फटी हुई सारी gogles लगा के देखते है
राजधानी ट्रेन की AC अब भने लगी है,
Kingfisher की उड़ान लुभाने लगी है
कहने को तो मैं कहता ही जाऊंगा
लिखने बैठ गया तो ग्रन्थ लिख जाऊंगा
पर लाख टके की बात मुफ्त में बतलाता हूँ
महानगर को कोसना बंद करो
हमारा इक्छा हमें बहकता है
अपने दिल को ज़रा सा साफ़ करो, अब मुझे माफ़ करो
चाहोगे तो पूरा महानगर अपना परिवार लगेगा
वरना भैये अपना परिवार भी महानगर लगेगा
बुरा कोई जगह या बुरी कोई चीजे नहीं होती
बुरे होते है हम, हमारी सोंच बुरी होती है
वो किसी ने खूब ही तो कहा है
हमसे है जमना, हम ज़माने से नहीं…